कोई भी कर्मचारी अपनी जान पर खेलकर अपने मालिक के लिये वफ़ादारी और समर्पण से काम
क्यों करता है? इसका जवाब है कि उसे यह विश्वास होता है कि उसका मालिक उसके हर
सुख-दुख में काम आयेगा तथा उसके परिवार का पूरा ख्याल रखेगा, और संकट की घड़ी में
यदि कम्पनी या फ़ैक्ट्री का मालिक उस कर्मचारी से अपने परिवार के एक सदस्य की भाँति
पेश आता है तब वह उसका भक्त बन जाता है। फ़िर वह मालिक, मीडिया वालों, राजनीतिबाजों,
कार्पोरेट कल्चर वालों की निगाह में कुछ भी हो, उस संस्थान में काम करने वाले
कर्मचारी के लिये एक हीरो ही होता है। भूमिका से ही आप समझ गये होंगे कि बात हो रही
है रतन टाटा की।
26/11 को ताज होटल पर हमला हुआ। तीन दिनों तक घमासान युद्ध हुआ, जिसमें
बाहर हमारे NSG और पुलिस के जवानों ने बहादुरी दिखाई, जबकि भीतर होटल के
कर्मचारियों ने असाधारण धैर्य और बहादुरी का प्रदर्शन किया। 30 नवम्बर को ताज होटल
तात्कालिक रूप से अस्थाई बन्द किया गया। इसके बाद रतन टाटा ने क्या-क्या किया, पहले
यह देख लें -
1) उस दिन ताज होटल में जितने भी
कर्मचारी काम पर थे, चाहे उन्हें काम करते हुए एक दिन ही क्यों न हुआ हो, अस्थाई
ठेका कर्मचारी हों या स्थायी कर्मचारी, सभी को रतन टाटा ने "ऑन-ड्यूटी" मानते हुए
उसी स्केल के अनुसार वेतन दिया।
2) होटल में जितने भी कर्मचारी मारे गये या
घायल हुए, सभी का पूरा इलाज टाटा ने करवाया।
3) होटल के आसपास पाव-भाजी,
सब्जी, मछली आदि का ठेला लगाने वाले सभी ठेलाचालकों (जो कि सुरक्षा बलों और
आतंकवादियों की गोलाबारी में घायल हुए, अथवा उनके ठेले नष्ट हो गये) को प्रति ठेला
60,000 रुपये का भुगतान रतन टाटा की तरफ़ से किया गया। एक ठेले वाले की छोटी बच्ची
भी "क्रास-फ़ायर" में फ़ँसने के दौरान उसे चार गोलियाँ लगीं जिसमें से एक गोली सरकारी
अस्पताल में निकाल दी गई, बाकी की नहीं निकलने पर टाटा ने अपने अस्पताल में
विशेषज्ञों से ऑपरेशन करके निकलवाईं, जिसका कुल खर्च 4 लाख रुपये आया और यह पैसा उस
ठेले वाले से लेने का तो सवाल ही नहीं उठता था।
4) जब तक होटल बन्द रहा,
सभी कर्मचारियों का वेतन मनीऑर्डर से उनसे घर पहुँचाने की व्यवस्था की गई।
5) टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस की तरफ़ से एक मनोचिकित्सक ने सभी घायलों
के परिवारों से सतत सम्पर्क बनाये रखा और उनका मनोबल बनाये रखा।
6)
प्रत्येक घायल कर्मचारी की देखरेख के लिये हरेक को एक-एक उच्च अधिकारी का फ़ोन नम्बर
और उपलब्धता दी गई थी, जो कि उसकी किसी भी मदद के लिये किसी भी समय तैयार रहता था।
7) 80 से अधिक मृत अथवा गम्भीर रूप से घायल कर्मचारियों के यहाँ खुद रतन
टाटा ने अपनी व्यक्तिगत उपस्थिति दर्ज करवाई, जिसे देखकर परिवार वाले भी भौंचक थे।
8) घायल कर्मचारियों के सभी प्रमुख रिश्तेदारों को बाहर से लाने की
व्यवस्था की गई और सभी को होटल प्रेसिडेण्ट में तब तक ठहराया गया, जब तक कि
सम्बन्धित कर्मचारी खतरे से बाहर नहीं हो गया।
9) सिर्फ़ 20 दिनों के भीतर
सारी कानूनी खानापूर्तियों को निपटाते हुए रतन टाटा ने सभी घायलों के लिये एक
ट्रस्ट का निर्माण किया जो आने वाले समय में उनकी आर्थिक देखभाल करेगा।
10)
सबसे प्रमुख बात यह कि जिनका टाटा या उनके संस्थान से कोई सम्बन्ध नहीं है, ऐसे
रेल्वे कर्मचारियों, पुलिस स्टाफ़, तथा अन्य घायलों को भी रतन टाटा की ओर से 6 माह
तक 10,000 रुपये की सहायता दी गई।
11) सभी 46 मृत कर्मचारियों के बच्चों को
टाटा के संस्थानों में आजीवन मुफ़्त शिक्षा की जिम्मेदारी भी उठाई है।
12)
मरने वाले कर्मचारी को उसके ओहदे के मुताबिक नौकरी-काल के अनुमान से 36 से 85 लाख
रुपये तक का भुगतान तुरन्त किया गया। इसके अलावा जिन्हें यह पैसा एकमुश्त नहीं
चाहिये था, उन परिवारों और आश्रितों को आजीवन पेंशन दी जायेगी। इसी प्रकार पूरे
परिवार का मेडिकल बीमा और खर्च टाटा की तरफ़ से दिया जायेगा। यदि मृत परिवार ने टाटा
की कम्पनी से कोई लोन वगैरह लिया था उसे तुरन्त प्रभाव से खत्म माना गया।
हाल ही में ताज होटल समूह के प्रेसिडेंट एचएन श्रीनिवास ने एक
इंटरव्यू दिया है, जिसमें उन्होंने उस हमले, हमले के दौरान ताज के कर्मचारियों
तथा हमले के बाद ताज होटल तथा रतन टाटा के बारे में विचार व्यक्त किये हैं। इसी
इंटरव्यू के मुख्य अंश आपने अभी पढ़े कि रतन टाटा ने क्या-क्या किया, लेकिन संकट के
क्षणों में होटल के उन कर्मचारियों ने "अपने होटल" (जी हाँ अपने होटल) के लिये क्या
किया इसकी भी एक झलक देखिये -
1) आतंकवादियों ने अगले और पिछले दोनों गेट
से प्रवेश किया, और मुख्य द्वार के आसपास RDX बिखेर दिया ताकि जगह आग लग जाये और
पर्यटक-सैलानी और होटल की पार्टियों में शामिल लोग भगदड़ करें और उन्हें निशाना
बनाया जा सके, इन RDX के टुकड़ों को ताज के कुछ सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जान पर
खेलकर हटाया अथवा दूर फ़ेंका।
2) उस दिन होटल में कुछ शादियाँ, और मीटिंग्स
इत्यादि चल रही थीं, जिसमें से एक बड़े बोहरा परिवार की शादी ग्राउंड फ़्लोर पर चल
रही थी। कई बड़ी कम्पनियों के CEO तथा बोर्ड सदस्य विभिन्न बैठकों में शामिल होने
आये थे।
3) रात 8.30 बजे जैसे ही आतंकवादियों सम्
क्यों करता है? इसका जवाब है कि उसे यह विश्वास होता है कि उसका मालिक उसके हर
सुख-दुख में काम आयेगा तथा उसके परिवार का पूरा ख्याल रखेगा, और संकट की घड़ी में
यदि कम्पनी या फ़ैक्ट्री का मालिक उस कर्मचारी से अपने परिवार के एक सदस्य की भाँति
पेश आता है तब वह उसका भक्त बन जाता है। फ़िर वह मालिक, मीडिया वालों, राजनीतिबाजों,
कार्पोरेट कल्चर वालों की निगाह में कुछ भी हो, उस संस्थान में काम करने वाले
कर्मचारी के लिये एक हीरो ही होता है। भूमिका से ही आप समझ गये होंगे कि बात हो रही
है रतन टाटा की।
26/11 को ताज होटल पर हमला हुआ। तीन दिनों तक घमासान युद्ध हुआ, जिसमें
बाहर हमारे NSG और पुलिस के जवानों ने बहादुरी दिखाई, जबकि भीतर होटल के
कर्मचारियों ने असाधारण धैर्य और बहादुरी का प्रदर्शन किया। 30 नवम्बर को ताज होटल
तात्कालिक रूप से अस्थाई बन्द किया गया। इसके बाद रतन टाटा ने क्या-क्या किया, पहले
यह देख लें -
1) उस दिन ताज होटल में जितने भी
कर्मचारी काम पर थे, चाहे उन्हें काम करते हुए एक दिन ही क्यों न हुआ हो, अस्थाई
ठेका कर्मचारी हों या स्थायी कर्मचारी, सभी को रतन टाटा ने "ऑन-ड्यूटी" मानते हुए
उसी स्केल के अनुसार वेतन दिया।
2) होटल में जितने भी कर्मचारी मारे गये या
घायल हुए, सभी का पूरा इलाज टाटा ने करवाया।
3) होटल के आसपास पाव-भाजी,
सब्जी, मछली आदि का ठेला लगाने वाले सभी ठेलाचालकों (जो कि सुरक्षा बलों और
आतंकवादियों की गोलाबारी में घायल हुए, अथवा उनके ठेले नष्ट हो गये) को प्रति ठेला
60,000 रुपये का भुगतान रतन टाटा की तरफ़ से किया गया। एक ठेले वाले की छोटी बच्ची
भी "क्रास-फ़ायर" में फ़ँसने के दौरान उसे चार गोलियाँ लगीं जिसमें से एक गोली सरकारी
अस्पताल में निकाल दी गई, बाकी की नहीं निकलने पर टाटा ने अपने अस्पताल में
विशेषज्ञों से ऑपरेशन करके निकलवाईं, जिसका कुल खर्च 4 लाख रुपये आया और यह पैसा उस
ठेले वाले से लेने का तो सवाल ही नहीं उठता था।
4) जब तक होटल बन्द रहा,
सभी कर्मचारियों का वेतन मनीऑर्डर से उनसे घर पहुँचाने की व्यवस्था की गई।
5) टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस की तरफ़ से एक मनोचिकित्सक ने सभी घायलों
के परिवारों से सतत सम्पर्क बनाये रखा और उनका मनोबल बनाये रखा।
6)
प्रत्येक घायल कर्मचारी की देखरेख के लिये हरेक को एक-एक उच्च अधिकारी का फ़ोन नम्बर
और उपलब्धता दी गई थी, जो कि उसकी किसी भी मदद के लिये किसी भी समय तैयार रहता था।
7) 80 से अधिक मृत अथवा गम्भीर रूप से घायल कर्मचारियों के यहाँ खुद रतन
टाटा ने अपनी व्यक्तिगत उपस्थिति दर्ज करवाई, जिसे देखकर परिवार वाले भी भौंचक थे।
8) घायल कर्मचारियों के सभी प्रमुख रिश्तेदारों को बाहर से लाने की
व्यवस्था की गई और सभी को होटल प्रेसिडेण्ट में तब तक ठहराया गया, जब तक कि
सम्बन्धित कर्मचारी खतरे से बाहर नहीं हो गया।
9) सिर्फ़ 20 दिनों के भीतर
सारी कानूनी खानापूर्तियों को निपटाते हुए रतन टाटा ने सभी घायलों के लिये एक
ट्रस्ट का निर्माण किया जो आने वाले समय में उनकी आर्थिक देखभाल करेगा।
10)
सबसे प्रमुख बात यह कि जिनका टाटा या उनके संस्थान से कोई सम्बन्ध नहीं है, ऐसे
रेल्वे कर्मचारियों, पुलिस स्टाफ़, तथा अन्य घायलों को भी रतन टाटा की ओर से 6 माह
तक 10,000 रुपये की सहायता दी गई।
11) सभी 46 मृत कर्मचारियों के बच्चों को
टाटा के संस्थानों में आजीवन मुफ़्त शिक्षा की जिम्मेदारी भी उठाई है।
12)
मरने वाले कर्मचारी को उसके ओहदे के मुताबिक नौकरी-काल के अनुमान से 36 से 85 लाख
रुपये तक का भुगतान तुरन्त किया गया। इसके अलावा जिन्हें यह पैसा एकमुश्त नहीं
चाहिये था, उन परिवारों और आश्रितों को आजीवन पेंशन दी जायेगी। इसी प्रकार पूरे
परिवार का मेडिकल बीमा और खर्च टाटा की तरफ़ से दिया जायेगा। यदि मृत परिवार ने टाटा
की कम्पनी से कोई लोन वगैरह लिया था उसे तुरन्त प्रभाव से खत्म माना गया।
हाल ही में ताज होटल समूह के प्रेसिडेंट एचएन श्रीनिवास ने एक
इंटरव्यू दिया है, जिसमें उन्होंने उस हमले, हमले के दौरान ताज के कर्मचारियों
तथा हमले के बाद ताज होटल तथा रतन टाटा के बारे में विचार व्यक्त किये हैं। इसी
इंटरव्यू के मुख्य अंश आपने अभी पढ़े कि रतन टाटा ने क्या-क्या किया, लेकिन संकट के
क्षणों में होटल के उन कर्मचारियों ने "अपने होटल" (जी हाँ अपने होटल) के लिये क्या
किया इसकी भी एक झलक देखिये -
1) आतंकवादियों ने अगले और पिछले दोनों गेट
से प्रवेश किया, और मुख्य द्वार के आसपास RDX बिखेर दिया ताकि जगह आग लग जाये और
पर्यटक-सैलानी और होटल की पार्टियों में शामिल लोग भगदड़ करें और उन्हें निशाना
बनाया जा सके, इन RDX के टुकड़ों को ताज के कुछ सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जान पर
खेलकर हटाया अथवा दूर फ़ेंका।
2) उस दिन होटल में कुछ शादियाँ, और मीटिंग्स
इत्यादि चल रही थीं, जिसमें से एक बड़े बोहरा परिवार की शादी ग्राउंड फ़्लोर पर चल
रही थी। कई बड़ी कम्पनियों के CEO तथा बोर्ड सदस्य विभिन्न बैठकों में शामिल होने
आये थे।
3) रात 8.30 बजे जैसे ही आतंकवादियों सम्